शहर के एक पुराने मोहल्ले में, जहाँ गलियों में सुबह की धूप भी शर्माती हुई पहुँचती थी, सविता भाभी का घर था। बाहर से साधारण सा मकान, लेकिन अंदर से उसकी जिंदगी एक अनोखी कहानी थी—खूबसूरती, दर्द और भावनाओं का संगम। सविता भाभी 35 साल की थी, लेकिन उसकी उम्र उसकी चमकती आँखों और मुस्कान में कभी झलकती नहीं थी। लंबे, घने काले बाल जो हवा में लहराते थे, और उसकी साड़ी का अंदाज़, जो हर किसी को हैरान कर देता था। मोहल्ले के लोग उसे "हॉट भाभी" कहते थे, लेकिन ये नाम सिर्फ उसकी सूरत की वजह से नहीं था, बल्कि उसके दिल की गर्मजोशी और जिंदादिली उसकी मिठी मुस्कान की वजह से भी था।
सविता भाभी की जिंदगी का एक अहम हिस्सा उसकी छोटी सी बेकरी थी, जिसका नाम था "Hot n Hot"। ये दुकान मोहल्ले के बीचोंबीच थी और सिर्फ केक या चाय की जगह नहीं थी, बल्कि लोगों के लिए एक ठिकाना थी, जहाँ वो अपने दिन का सुकून पाते थे। सुबह से शाम तक वहाँ चॉकलेट की मिठास और मसाला चाय की खुशबू हवा में तैरती रहती थी। बच्चे स्कूल से लौटते वक्त वहाँ ठहरते, बुजुर्ग अपनी चाय की चुस्कियों के साथ गप्पें मारते, और जवान लड़के-लड़कियाँ सविता भाभी को देखने का बहाना ढूंढते। उसकी साड़ी का पल्लू हमेशा सलीके से सजा होता, और उसका आत्मविश्वास हर किसी को प्रभावित करता। लेकिन उसकी हँसी के पीछे एक गहरा दर्द छिपा था, जिसे शायद ही कोई समझ पाता था।
- बचपन का सुनहरा दौर और टूटे सपने
सविता भाभी का बचपन उसी मोहल्ले की तंग गलियों में बीता था। उसके पिता एक स्कूल टीचर थे, और माँ घर की देखभाल करती थी। सविता उनकी इकलौती बेटी थी, और घर में हमेशा हँसी-खुशी का माहौल रहता था। उसे पढ़ाई का शौक था, और वो सपने देखती थी कि एक दिन वो शहर की सबसे बड़ी बेकरी की मालकिन बनेगी। लेकिन जिंदगी ने उसके सपनों को उस वक्त छीन लिया, जब वो सिर्फ 15 साल की थी। एक सड़क हादसे में उसके पिता की मौत हो गई, और उसकी माँ सदमे से बीमार पड़ गई। सविता की दुनिया एक पल में बिखर गई। स्कूल छोड़ना पड़ा, और छोटी-मोटी नौकरियाँ करके उसने घर चलाना शुरू किया।
उस वक्त सविता की खूबसूरती उसके लिए मुसीबत बन गई। मोहल्ले के कुछ लोग उस पर गलत नजर रखते थे, और उसकी माँ की हालत ऐसी नहीं थी कि वो उसकी रक्षा कर सके। लेकिन सविता ने हार नहीं मानी। उसने अपने दुख को अपनी ताकत बनाया और मेहनत से पाई-पाई जोड़कर एक छोटी सी बेकरी शुरू की। पहले दिन जब उसने अपनी पहली चॉकलेट केक बेची, तो उसकी आँखों में आँसू थे—खुशी के नहीं, बल्कि उन टूटे सपनों के, जो कभी उसके अपने थे। उसने अपनी माँ से वादा किया था कि वो कभी हार नहीं मानेगी, और उस वादे को वो हर दिन निभाती थी।
- बेकरी: एक नई शुरुआत
"सविता की Hot N Hot बेकरी" सविता भाभी की जिंदगी का दूसरा मौका थी। हर सुबह वो सूरज उगने से पहले उठती, आटा गूंधती, ओवन जलाती और अपने हाथों से मिठाइयाँ बनाती। उसकी चाय में एक खास मसाला था, जिसका राज वो किसी को नहीं बताती थी। लोग कहते थे कि उसकी चाय में जादू है, जो दिल को सुकून देता है। धीरे-धीरे उसकी बेकरी मशहूर होने लगी, और सविता भाभी का नाम मोहल्ले से बाहर तक फैल गया। उसकी मेहनत और लगन ने उसे एक पहचान दी, लेकिन उसकी जिंदगी में एक रहस्य भी था, जो लोगों के लिए कौतुहल का विषय बना हुआ था।
हर रात, जब बेकरी बंद होती, सविता भाभी अपनी साड़ी का पल्लू ठीक करती, एक छोटा सा डिब्बा उठाती और कहीं चली जाती थी। लोग तरह-तरह के कयास लगाते थे। कोई कहता कि वो किसी से मिलने जाती है, कोई कहता कि रात में कोई दूसरा काम करती है। सच तो ये था कि सविता भाभी अपने बीमार माता-पिता के लिए खाना लेकर जाती थी, जो अब शहर के बाहरी इलाके में एक छोटे से घर में रहते थे। उसकी माँ की हालत अब पहले से भी खराब थी, और पिता की मौत के बाद वो पूरी तरह टूट चुकी थी। सविता हर रात उनके पास जाती, उन्हें खाना खिलाती, उनकी दवाइयाँ देती और चुपचाप वापस लौट आती। ये उसका बोझ था, जिसे वो अकेले ढोती थी। उसकी आँखों में थकान होती थी, लेकिन होंठों पर हमेशा मुस्कान रहती थी।
- अर्जुन का आगमन और भावनाओं का तूफान
एक दिन मोहल्ले में एक नया चेहरा आया—अर्जुन। 28 साल का अर्जुन एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर था, जो नौकरी के सिलसिले में शहर आया था। उसने सविता भाभी के घर के पास ही एक किराए का मकान लिया। पहली बार जब वो "सविता की मिठास" में आया, तो उसकी नजर सविता भाभी पर ठहर गई। उसकी सादगी और खूबसूरती ने उसे प्रभावित किया। उसने एक कप चाय और एक चॉकलेट केक माँगा। चाय पीते हुए उसने सविता से बात शुरू की।
"भाभी, आपकी चाय में सच में जादू है," अर्जुन ने हँसते हुए कहा।
सविता भाभी ने मुस्कुराकर जवाब दिया, "जादू मेरे हाथों में नहीं, मेरे दिल में है।"
उसके इस जवाब ने अर्जुन को सोच में डाल दिया। अगले दिन वो फिर आया, और फिर अगले दिन भी। धीरे-धीरे दोनों में दोस्ती हो गई। अर्जुन को सविता भाभी की हँसी पसंद थी, और सविता को अर्जुन की सादगी। लेकिन एक दिन अर्जुन ने वो सवाल पूछ लिया, जो मोहल्ले में हर कोई जानना चाहता था।
"भाभी, आप रात को कहाँ चली जाती हैं? लोग तो कहते हैं कि आप कोई रहस्य छुपाती हैं।"
सविता भाभी की मुस्कान एक पल के लिए फीकी पड़ गई। उसकी आँखों में एक दर्द उभरा, जो सालों से दबा हुआ था। फिर उसने धीरे से कहा, "रहस्य नहीं, अर्जुन। बस एक जिम्मेदारी है। मैं अपने माँ-बाप के लिए खाना लेकर जाती हूँ। वो बीमार हैं, और मेरे सिवा उनका कोई नहीं।"
अर्जुन को अपनी जिज्ञासा पर शर्मिंदगी हुई। उसने माफी माँगी, लेकिन सविता भाभी ने उसे रोक दिया। "कोई बात नहीं। लोग जो सोचते हैं, वो उनकी मर्जी है। मैं अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीती हूँ।" उसकी आवाज में एक दृढ़ता थी, जो अर्जुन के दिल को छू गई।
- भावनाओं का उफान और एक नया मोड़
अर्जुन और सविता भाभी की दोस्ती गहरी होती गई। अर्जुन अब हर रात सविता के साथ उसके माता-पिता के घर जाने लगा। वो उनकी मदद करता, सविता का बोझ हल्का करता। सविता को पहली बार लगा कि उसकी जिंदगी में कोई ऐसा है, जो उसे समझता है। लेकिन इस दोस्ती में एक भावना पनप रही थी, जिसे दोनों समझ नहीं पा रहे थे। अर्जुन को सविता भाभी से प्यार हो गया था, लेकिन वो उसे बता नहीं पाया। सविता भी अर्जुन के लिए कुछ महसूस करती थी, लेकिन अपने अतीत और जिम्मेदारियों के बोझ तले वो इसे स्वीकार नहीं कर पाई।
एक रात, जब बारिश हो रही थी, अर्जुन और सविता साथ में वापस लौट रहे थे। रास्ते में सविता ठंड से काँपने लगी। अर्जुन ने अपनी जैकेट उतारी और उसे दे दी। उस पल में दोनों एक-दूसरे की आँखों में खो गए। अर्जुन ने हिम्मत जुटाई और कहा, "सविता, मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ। मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता।"
सविता भाभी की आँखें भर आईं। उसने कहा, "अर्जुन, मेरी जिंदगी में बहुत कुछ ऐसा है, जो मैं बदल नहीं सकती। मैं तुम्हें वो खुशी नहीं दे सकती, जिसकी तुम हकदार हो।" उसकी आवाज में दर्द था, लेकिन प्यार भी था। अर्जुन ने उसका हाथ थामा और कहा, "मुझे तुम्हारी जिंदगी का हर दर्द चाहिए, अगर उसमें तुम हो।"
उस रात दोनों ने अपने दिल की बात कह दी। लेकिन सविता भाभी ने अर्जुन से वादा लिया कि वो जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लेंगे।
एक नई सुबह
समय बीतता गया। सविता भाभी की माँ की तबीयत बिगड़ती गई, और एक दिन वो इस दुनिया को छोड़कर चली गई। सविता टूट गई, लेकिन अर्जुन उसके साथ खड़ा रहा। उसने सविता को हिम्मत दी, और धीरे-धीरे उसे फिर से हँसना सिखाया। मोहल्ले के लोग अब सविता भाभी को सिर्फ "हॉट भाभी" नहीं कहते थे, बल्कि उसकी हिम्मत और प्यार की मिसाल देते थे।
सविता भाभी और अर्जुन ने एक नई शुरुआत की। उनकी बेकरी अब और बड़ी हो गई, और उनकी कहानी मोहल्ले की हर जुबान पर थी। सविता की जिंदगी में मिठास फिर लौट आई—न सिर्फ उसके केक की, बल्कि उसके दिल की।