शिवाजी राजे और तानाजी : महाराष्ट्र के महान योद्धा - जीवन, योगदान और इतिहास
तानाजी मालुसरे की सबसे मशहूर लड़ाई "सिंहगड़ का युद्ध" थी, जिसमें उन्होंने मुघालो के किले को जीता. इस युद्ध के बारे में कुछ अधिक जानकारी नीचे दी गई है.छ.शिवाजी राजे और तानाजी मालुसरे दोनों महाराष्ट्र के महान योद्धा थे जिन्होंने मराठा साम्राज्य की नींव रखी और मुग़ल साम्राज्य के ख़िलाफ़ संग्राम लड़ा.शिवाजी राजे (1630-1680) मराठा साम्राज्य के संस्थापक थे और उन्हें मराठा आदिवासी और मुग़ल साम्राज्य के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए प्रेरणा मिली. उन्होंने स्वराज्य की लड़ाई लड़कर महाराष्ट्र क्षेत्र में अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित किया. शिवाजी राजे की सेना बहुत तेज़ और ज्ञानी रणनीतियों के लिए प्रसिद्ध थी.तानाजी मालुसरे एक मराठा सेनापति थे और उन्हें शिवाजी राजे की महत्वपूर्ण योद्धा माना जाता है तानाजी ने कोंढाणा के किले को वापस लेने के लिए जानलेवा प्रयास किया, जिसे "सिंहगड़ की लड़ाई" के रूप में जाना जाता है. इस लड़ाई में तानाजी की बहादुरी और योद्धा दृष्टिकोण को प्रशंसा मिली और उन्हें जिवंत मराठा राजाओं की मुख्यता में रखा गया. छत्रपती शिवाजी महाराज जी के परममित्र सुभेदार तानाजी मालुसरे जी ने बड़े वीरता का परिचय देते हुये कोंढाणा किले को, उसके पास के क्षेत्र को मुगलों के कब्जे से स्वतंत्र कराया. इस युद्ध के समय जब उनकी ढाल टूट गई तो तानाजी मालुसरे जी ने अपने सिर के फेटे (पगड़ी) को अपने हाथ पर बांधा और तलवार के वार अपने हाथों पर लिये एक हाथ से वे वायु की तेज गती से तलवार चलाते रहे. कोंढाणा कीले के कीलेदार उदयभान राठौड़ से तानाजी मालुसरे जी ने युद्ध किया और ढाल तुटने के कारन उदयभान की तलवार के वार से तानाजी मालुसरे का एक हात कट गया और वो लढाई मे एक हाथ से लड़ते हुए उदय भान को मार डाला। युद्ध में गंभीर रूप से घायल होने के कारण तानाजी ने अपने प्राण त्याग दिये । तानाजी के भाई सूर्याजी मालुसरे ने कोंढाणा पर भगवा लेह राया.तानाजी मालूसरे मराठा साम्राज्य के मराठा सेना मे कोली सूबेदार सरदार थे। वे छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ मराठा साम्राज्य, हिंदवी स्वराज्य स्थापना के लिए सूबेदार (किल्लेदार) की भूमिका निभाते थे . तानाजी छत्रपति शिवाजी महाराज के बचपन के मित्र थे वे बचपन मे एक साथ खेले थे.वें १६७० ई. में सिंहगढ़ की लड़ाई में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए प्रसिद्ध हैं। उस दिन सुभेदार तानाजी मालुसरेजी के पुत्र रायबा के विवाह की तैयारी हो रही थी, तानाजी मालुसरे जी छत्रपती शिवाजी महाराज जी को आमंत्रित करने पहुंचे तब उन्हें ज्ञात हुआ की कोंढाणा पर छत्रपती शिवाजी महाराज चढ़ाई करने वाले हैं, तब तानाजी मालुसरे जी ने कहा राजे मैं कोंढाणा पर आक्रमण करुंगा .अपने पुत्र रायबा के विवाह जैसे महत्वपूर्ण कार्य को महत्व न देते हुए उन्होने शिवाजी महाराज की इच्छा का मान रखते हुए कोंढाणा किला जीतना ज़्यादा जरुरी समझा। छत्रपती शिवाजी महाराज जी की सेना मे कई सरदार थे परंतु छत्रपति शिवाजी महाराज जी ने वीर तानाजी मालुसरे जी को कोंंढाना आक्रमण के लिए चुना और कोंढणा "स्वराज्य" में शामिल हो गया लेकिन तानाजी मारे गए थे। छत्रपति शिवाजी ने जब यह समाचार सुनी तो वो बोल पड़े "गढ़ तो जीत लिया, लेकिन मेरा "सिंह" नहीं रहा (मराठी - गड आला पण सिंह गेला) यह वाक्य शिवाजी महाराज ने बोला था. तानाजी मालुसरे की कहानी को बॉलीवुड फिल्म "तानाजी: द अन संग वॉरियर्स" में दर्शाया गया है, जिसमें अजय देवगन ने उनकी भूमिका निभाई है। यह फिल्म भारतीय बॉक्स ऑफिस पर बड़ी सफलता प्राप्त करने के साथ-साथ तानाजी मालुसरे की कहानी को व्यापक रूप से प्रसिद्ध किया है. कृपया शेयर करे 🙏