हनुमान चालिसा भारतीय समाज का एक प्रमुख शक्ती काव्य भक्ति भजन है जो भगवान हनुमानजी को समर्पित है, जो हिंदू धर्म में एक प्रमुख देवता है जो अपनी ताकत,श्री राम भक्ति और वफादारी के लिए जाना जाता है. ऐसा माना जाता है कि इसकी रचना 16 वीं शताब्दी के भारतीय कवि तुलसीदास ने की थी. कवी तुलसीदास जी के जीवन का एक किस्सा आपको बताता हू,
- कहानी -
आज मे आपको एक ऐसा किस्सा सुनाने जा रहे हैं जो एक भक्त की भक्ति को दर्शाता है, अपने भगवान के प्रेम अटूट विश्वास को दर्शाता है और एक भगवान के अपने भक्त के लिए स्वयं दौड़े चले आने को दर्शाता है।तुलसीदास जी की भक्ति और हनुमान जी की शक्ति से जुड़ा एक ऐसा किस्सा बताया है जिसके साक्षी स्वयं मुग़ल सम्राट अकबर रह चुके हैं।
एक बार तुलसीदास नाम का एक ब्राह्मण राम भजन गाता है इस बात की खबर अकबर तक पहुंची। अकबर ने तुलसीदास जी को अपने दरबार में बुलाया। जब तुलसीदास जी वहां पहुंचे तो अकबर ने उनका स्वागत किया।
लेकिन तुलसीदास जी ने विनम्र प्रणाम तो किया मगर अकबर के आगे झुककर सलामी नहीं दी। यह देख समस्त दरबारी गुस्से में आ गए और अकबर को भी यह व्यवहार पसंद नहीं आया। तब तुलसीदास जी ने उन्हें कहा कि वह सिर्फ श्री राम के आगे झुकते हैं।
यह सुन अकबर का गुस्सा चरम पर पहुंच गया और उसने तुलसीदास जी को बंधी बनाने का आदेश दिया। उन्हे काल कोठडी मे डाला गया यह सुन तुलसीदास जी घबराने के स्थान पर हनुमान जी के भजन गाने लगे।वहा उन्होंने हनुमान चालीसा भजन गाके आर्त स्वर से महाबली की प्रार्थना की अपने भक्त को छूडाने स्वयं भगवान ने उनके दुत वानर भेजे. कहा जाता है कि तुलसीदास जी की पुकार सुन हनुमान जी स्वयं वहां प्रकट हो गए।
हुआ यूं कि पहले तो अकबर के महल पर अचानक कई बड़े-बड़े झुंड में वानरों ने हमला कर दिया और सिपाहियों को घायल कर दिया। पूरे महल में वानरों ने हाहाकार मचा दिया था। जिसे देख अकबर भी घबरा गए थे और कुछ भी समझ पाने में असमर्थ थे।
तुलसीदास जी ने अकबर को बताया कि आपने मेरा अहित करना चाहा और मेरे प्रभु स्वयं आ गए। तब अकबर ने हनुमान जी की शक्ति को माना और तुलसीदास जी को आदरपूर्वक उनकी कुटिया में जाने दिया।
- हनुमान चालिसा के बारे में कुछ प्रमुख बिंदु यहां दिए गए हैं:
- भक्ति प्रार्थना: हनुमान चालिसा एक शक्तिशाली भक्ति प्रार्थना है जिसे दुनिया भर के लाखों हिंदुओं द्वारा भगवान हनुमान के आशीर्वाद और सुरक्षा की तलाश में सुनाया जाता है.
- रचना: तुलसीदास ने अवधी भाषा में हनुमान चालिसा लिखी. यह 40 छंदों चलिसा के साथ एक प्रारूप में बना है, जिनमें से प्रत्येक हनुमान के गुणों, कारनामों और भगवान राम के प्रति समर्पण के विभिन्न पहलुओं की प्रशंसा करता है.
- महत्व: भक्तों का मानना है कि हनुमान चालिसा का पाठ करने से शक्ति, साहस और आध्यात्मिक उत्थान हो सकता है. यह अक्सर बाधाओं को दूर करने, सफलता प्राप्त करने और आंतरिक शांति खोजने के लिए सुनाया जाता है.
- भगवान राम के प्रति समर्पण: हनुमान भगवान राम के सातवें अवतार भगवान राम के एक समर्पित शिष्य माने जाते हैं. हनुमान चालिसा, हनुमान के भगवान राम के प्रति अटूट समर्पण और महाकाव्य रामायण में उनकी भूमिका को दर्शाता है.
- छंद और अर्थ: हनुमान चालिसा की प्रत्येक कविता गहरे आध्यात्मिक और दार्शनिक अर्थ को वहन करती है. यह हनुमान के गुणों जैसे उनकी असीम भक्ति, विनम्रता और शक्ति के प्रतीक के रूप में उनकी भूमिका को बढ़ाता है.
- अनुष्ठान: भक्त आमतौर पर हनुमान चालिसा को दैनिक या विशेष अवसरों पर, विशेष रूप से मंगलवार और शनिवार को सुनाते हैं, जिन्हें हनुमान पूजा के लिए शुभ दिन माना जाता है. कुछ लोग हनुमान चालिसा याग्ना का प्रदर्शन करने के लिए भी चुनते हैं, जो एक विशेष धार्मिक समारोह है जिसमें भजन का पाठ शामिल है.
- संगीत संस्करण: विभिन्न भाषाओं और संगीत शैलियों में हनुमान चालिसा के कई संगीत गायन हैं. बहुत से लोग इन मधुर संस्करणों को सुनकर सांत्वना और प्रेरणा पाते हैं.
- हनुमान जयंती: हनुमान जयंती, भगवान हनुमान का जन्मदिन, एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जिसे बड़ी भक्ति के साथ मनाया जाता है. हनुमान चालिसा को याद करना इस दिन एक आम बात है.
कुल मिलाकर, हनुमान चालिसा हिंदू धर्म में एक श्रद्धेय और व्यापक रूप से पोषित प्रार्थना है, इसके गहन आध्यात्मिक महत्व और इसे सुनाने वालों में भक्ति और शक्ति की भावना पैदा करने की क्षमता के लिए जाना जाता है.
- दोहा-
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
- चौपाई -
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै।
संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।।
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना।।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।।
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।
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