आँसूओ की आस-Granny Story In Hindi
शनिवार दोपहर को विजय का फोन आया था...
उसने कहा_ "कल सुबह आ रहा है क्या वृध्दाश्रम मे जाने के लिए ?
मैंने कहा, _अरे विजय " कल Friendship Day मैत्री दिवस हैं. तेरी दोस्तों के साथ पार्टी आयोजित करने की योजनाएं होंगी..."
"अरे यार ..!! पार्टी तो शाम को है. हम सुबह जाएंगे वृध्दाश्रम "_ विजय ने जवाब दिया .
"ठीक है " मैं भी तैयार था. नहि तो मेरी भी कई दिनों से वृध्दाश्रम देखने की इच्छा थी. मुझे मौका मिला था तो कहा चल.
मे सुबह जल्दी उठकर विजय के साथ वृध्दाश्रम चला गया. रास्ते में विजय ने बहुत सारी मिठाई,ओर खाना लिया.ओर हम चल दिये .जैसे ही हम वृध्दाश्रम मे प्रवेश किया विजय खुश था. अंदर जाते ही विजयका वहा "हाय हीरो! नमस्ते !" बेटा ऐसी आवाजोसे स्वागत शुरू हो गया.वहा के हर बुजुर्ग दादा-दादी अपनी उम्र भूल गए और विजय के साथ हम उम्र दोस्त जैसे बात करते हैं.वैसे बात करने लगे . विजय भी मुस्कुरहट के साथ उन्हें जवाब दे रहा था. विजय हर कमरे में जाते ही अपने हाथ से मिठाई बुजुर्ग लोगो को दे रहा था . आखीर मे वो एक कमरे मे गया अपने हाथ में केवल मिठाई के एक छोटे से बॉक्स के साथ कोने में कमरे में प्रवेश किया.
उस कमरे में एक बुढी वृद्धा व्हीलचेयर में बैठी थी.वह पचहत्तर साल की होगी लेकिन उसके चेहरे की बुद्धिमत्ता की चमक छिपी नहीं थी.आंख में एक अलग चमक थी.
"ओय बुढी, कैसी हो " ऐसा विजय जोरोसे चिल्लाया.
"बुढीया ने कहा कमीने कहाँ हैं ? क्या तु मुझे भुल गया अपनी दोस्तको"बुढीया तेज आवाज में जवाब दिया और अपनी बाहें फैला दीं .
एक मुस्कान के साथ विजय उसकी बाहों में गिर गया . विजय ने बुढीया से कहा, ये मेरा दोस्त हैं .बुढीया ने मेरी तरफ देखा और मुझसे हाथ मिलाया. मैं उस बुजुर्ग के पैर छूने नीचे झुका ,उसने व्हीलचेयर को पीछे लीया , यह कहते मना किया कि वह नहीं चाहती थी.
विजय ने कहा ”यह मेरा दोस्त है. ये थोडी बुढी दिखती है लेकिन बहोत शरारती है. ऊस दिन विजय ओर बुढीया एक दूसरे को कोस रहे थे पर उसमे एक आत्मीयता प्रेम था. विजय ने कहा उसकी मृत्यु के बाद, बुढीया उसकी सारी संपत्ति मेरे नाम पर करने जा रही है."ये यह कहकर विजय मुस्कुराया.
"बुढीया बोली कमीने मुझसे तुझे कुछ नहीं मिलेगा. तुझे मालूम हैं मुझे डायबिटीस का रोग हैं ये जानने के बावजूद मीठी मिठाई लाता है. मैं अपनी सारी संपत्ति तेरे नाम नही करुंगी ये मेरे पोते के नाम पर करूंगीं, तेरे नहीं."बुढीयाने भी जोर से जवाब दिया.
विस्मय भरा में मेरा चेहरा देखकर वे दोनों मुस्कुरा दिए . फिर उसने बताना शुरू किया.
”मैं जया मेरा नाम है. मे पेशे से शिक्षक थी. एक प्रिंसिपल के रूप में एक स्कूल से सेवानिवृत्त हुई. पति और मैं घर में अकेले रहते थे. मेरा बेटा बहोत होशियार था उसने परदेस मे पढाई की ओर उसे वहा नोकरी मिली तो वो वही का हो गया.हमारे साथ अपना देश भूल गया.
मेरी लड़की होनहार थी उसकी की शादी हो गई और वह एक अच्छे घर में चली गई. उसने पच्चीस साल तक ससुराल मे बीताये लेकिन उसके पास उतना जीवन नहीं था जितना मैंने जिया. पांच साल पहले, वह भी एक छोटी सी बीमारी के बहाने भगवान को सिधार गई गई . यह सब मेरे पती बरदाश नही कर पाये वह भी दो साल बाद भगवान को सिधार गये.
लड़के ने मेरी मदत के लिए एक महिला को काम पर रखा. विदेश से पैसा भेजते रहा . मुझे घुटनो की बीमारी थी जो इन हादसो के बाद बढ गई ओर बाद मेरे नसीब मे ये यह व्हीलचेयर मेरे भाग्य में आ गई. मेरी इस हालत के कारण कोई भी महिला हमारे यहा काम पर नहीं रहना चाहती थी.
लड़की के मर जाणे के बाद जमाई ने हमसे नाता तोड दिया . लडका यहां नहीं आना चाहता था. मैं बहुत निराश थी.लडके ने आखिरकार वृध्दाश्रम मे भरती कराणे का विकल्प सामने रखा और मैंने सहर्ष स्वीकार कर लिया.
"जब मैं यहां आई तो यहा सब कुछ था लेकिन मेरी अकेलेपन की भावना कम नहीं हुई.तभी विजय से मुलाकात हुई. विजय और उसके दोस्त अनाथ और बेघर लोगों को दफनाते हैं जैसा कि उनके रिश्तेदार करते वो सब करते. परमेश्वर ! ऐसे लोग हैं, इस लिये हमारे जैसे लोग जिंदा हैलेकिन समाज में.
”फिर यहा के लोग मुझे अच्छे लगणे लगे जो हमेशा दुसरो की मदत करते हैं.ओर लावारिस लोगो का अंतिम संस्कार करते है.मुझे लगता हैं विजय को दुःख क्या हैं ये मालूम नहि हैं. क्यो की वो हमेशा मुस्कुराता रहता है. किसी के अंतिम संस्कार की तैयारी करते समय, उसका चेहरा गंभीर रहता हैं लेकिन उसकी आंखो में उदासी नहीं दिखता है.
बुढीया ने कहा"पहली बार जब मैं विजय से मिली , तो उसने मुझे मिठाई का एक टुकड़ा दिया. मैंने कहा, 'मुझे डाईबिटिस है .' तो उन्होंने कहा, 'आप इस तरह से कितने साल जीना चाहती हो ? अब बहुत हो गया. इस जीवन और तबीयत की देखभाल करना. मौत को जल्दी आने दो बोलती हो लेकिन तबीयत का ख्याल भी रखना चाहती हो. चुपचाप खाओ जितनी जिंदगी बाकी हैं उसमे जो खाना है खाओ ओर खुश रहो. अपने दिमाग की मत सुनो,और जब तु मर जायेगी तो मैं ही तुम्हें समशान पोहचाने आऊंगा.
"उस दिनभर विजय की बात पर बुढीया मुस्कुराती रही. उस दिन से बुढीया का जीवन बदल गया. अब वो हमेशा केवल खुश रहना पसंद करती थी, उसे खुद पर हंसना आता था."
दोनो की बाते सुनकर हम मुस्कुराने लगे.
मैंने कहा, "हाँ. ये विजय ऐसा ही हैं मैंने इसे कभी गंभीर नहीं देखा."
बुढीयाने कहा, "बेटा विजय आज फ्रेंडशिप डे हैं.इस अवसर पर अपने बुजुर्ग दोस्त को एक उपहार दोगे क्या ?"
वैसे ही विजय मुस्कुराया,क्या ? तुम क्या उपहार चाहती हो बुढीया इस उम्र मे ? मैं तुम्हारा अंतिम संस्कार मे हीं करूंगा.
बुढीया बोली " नहीं मुझे कुछ जादा नही चाहिए. मे चाहती हू बाकी लोगो की तरह मेरे मरणे के बाद एक क्रीयाकरम करना है इस तरह मेरा अंतिम संस्कार नाहो.बिना किसी के रोये कीसी का अंतिम संस्कार हो ये ये बात मुझे बुरि लग रही है. मे चाहती हु मेरे मरणे के बाद मेरा कोई सगा नहि आनेवला रोने को कया तुम मेरे लिये थोडा रोओगे मेरे लिये. विजय मे जानती हू तुम हसमुख हो पर क्या तू मेरे मरणे के बाद तेरे थोडे आँसू बहायेगा. यही चाहती हू मे.
इस अप्रत्याशित मांग को सुनते ही विजय का दिल भर आया. एक पल के लिए, उसका चेहरा दुःख से मुड़ गया. मैं भी परेशान था.
विजय ", बुढीया कुछ भी मांगती है.."यह कहते हुए, विजय ने उसका हाथ पकड़ लिया. थोड़ी देर के लिए स्तब्ध और उसकी आँखों में देखा और उसकी आँखें भर आई कीसी तरह विजय कमरे से बाहर आया उसके आँसू छलक रहे थे.