गुवाहाटी का होनहार लड़का: मेहनत, सपने और अधूरी उम्मीदें
गुवाहाटी की तंग गलियों में एक ऐसा लड़का रहता था, जो दसवीं कक्षा का होनहार छात्र था। उसकी आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर थी। गरीबी ने उसके परिवार को जकड़ रखा था। माता-पिता ने उसे किन मुश्किलों से पाला, ये वही जानते थे। वह पार्ट-टाइम काम करके पढ़ाई करता था। स्कूल के शिक्षक और सहपाठी उसकी मेहनत की तारीफ करते थे।
वह न सिर्फ पढ़ाई में अच्छा था, बल्कि एक शानदार खिलाड़ी भी था। हर सुबह जल्दी उठकर स्कूल के मैदान में प्रैक्टिस करता। गोला फेंक (शॉट पुट) में उसका विशेष कौशल था। खेल शिक्षक उससे रोज कड़ी मेहनत करवाते। उसने जिला स्तर की कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और शानदार प्रदर्शन कर मेडल जीते। उसका सपना था कि वह अपने माता-पिता की मेहनत का कर्ज उतारे, चाहे इसके लिए कितनी भी मेहनत करनी पड़े।
समय का प्रबंधन और आर्थिक तंगी
उसने समय का सही प्रबंधन किया, लेकिन घर का रोजमर्रा का खर्च उसकी मुश्किलें बढ़ाता रहा। जहां रोज की रोटी के लिए संघर्ष हो, वहां ऐशो-आराम की बात सोचना पाप जैसा था। उसे आज भी एक घटना याद है। स्कूल ने जिला स्तरीय प्रतियोगिता में उसका चयन किया। लेकिन प्रतियोगिता दूसरे जिले में थी। उसके लिए यह कोई पिकनिक नहीं था, जैसा कि दूसरे बच्चे सोचते थे। उसकी आर्थिक तंगी को देखते हुए स्कूल ने उसके आने-जाने और खाने-पीने की व्यवस्था की। लेकिन अन्य सामान खरीदने के लिए उसे खुद खर्च करना था।
जब उसने अपने पिता से पैसे मांगे, तो उनके चेहरे पर लाचारी छा गई। फिर भी, माता-पिता ने उधार लेकर थोड़ी रकम जुटाई। उसने भी अपनी मेहनत से उस मौके को सार्थक किया और प्रतियोगिता में मेडल व सर्टिफिकेट जीता। जब उसने यह मेडल अपने माता-पिता को दिखाया, तो उनकी आंखों में खुशी के साथ एक अलग उम्मीद थी। वे सोच रहे थे कि शायद यह गोल्ड मेडल असली सोने का है। मां ने पूछा, “ये नकली तो नहीं?” तब उसने समझाया कि गोल्ड मेडल का मतलब असली सोना नहीं होता।
गुवाहाटी में नया मोड़
कुछ समय बाद राज्य में नई सरकार बनी। कुछ विधायकों ने दल-बदल किया और उन्हें अलग-अलग राज्यों में घुमाया गया। आखिरकार, वे गुवाहाटी पहुंचे। टीवी और सोशल मीडिया पर हर दिन नई खबरें छाई रहीं। लोग चर्चा करते कि विधायक क्या खाते हैं, क्या पीते हैं, कैसे नाचते-गाते हैं। कौन कितने में बिका, कौन कहां गया—ये सब खबरों का हिस्सा था। दो महीने कैसे बीत गए, किसी को पता ही नहीं चला। लेकिन जनता का जीवन वही था, रोज की जद्दोजहद।
इसी बीच, उस लड़के के लिए बड़ा मौका आया। उसका चयन राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता के लिए हुआ, और स्थान था—गुवाहाटी। देशभर की चुनिंदा स्कूलों के बच्चे इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वाले थे। लेकिन समस्या थी खर्च। इस बार 40,000 रुपये की जरूरत थी। यह रकम सुनकर उसे झटका लगा। उसने शिक्षकों को साफ बता दिया कि इतनी बड़ी रकम जुटाना उसके परिवार के लिए असंभव है।
सपनों पर आर्थिक तंगी की मार
शिक्षकों ने उसके पिता से बात की, लेकिन वे भी इतनी रकम जुटाने में असमर्थ थे। स्कूल ने चंदा इकट्ठा करने की कोशिश की, पर रकम पूरी नहीं हुई। किसी ने सलाह दी कि स्थानीय विधायक या जनप्रतिनिधि से मदद मांगी जाए। लेकिन विधायक तो गुवाहाटी में व्यस्त थे, और सरकारी मदद भी नहीं मिली। आखिर सारी कोशिशें नाकाम रहीं, और उसकी राष्ट्रीय प्रतियोगिता में हिस्सा लेने की उम्मीद टूट गई।
उसी दौरान, गुवाहाटी से एक विधायक का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा था। लोग उसे व्हाट्सएप, फेसबुक और टीवी पर देख और शेयर कर रहे थे। लेकिन उस लड़के का सपना पैसों की कमी के कारण अधूरा रह गया। उसे गुवाहाटी के पहाड़ या जंगल देखने की कोई इच्छा नहीं थी। वह तो बस अपने सपनों को पूरा करना चाहता था।
नई शुरुआत की तलाश
हार न मानते हुए, वह नए मौकों की तलाश में आगे बढ़ गया। उसकी कहानी हमें सिखाती है कि मेहनत और लगन के बावजूद, कई बार आर्थिक तंगी सपनों को रोक देती है। लेकिन सच्चा योद्धा वही है, जो हर हाल में आगे बढ़ता है।
नोट: यह कहानी काल्पनिक है और किसी व्यक्ति से संबंधित नहीं है। अगर आपको यह कहानी पसंद आई, तो इसे शेयर करें। धन्यवाद!