पॉपुलर ट्रेडिंग मैकेनिजम क्या हैं और वे भारतीय स्टॉक मार्केट में कैसे काम करते हैं और कैसे एक दुसरे पे हावी होते हैं, यह समझें हमारे ब्लॉग VikasJamdade.blospot.com मे तो चलिये जाणते हैं।👉मेरा शेअर investment अनुभव जाणे
जब आप "स्टॉक मार्केट" शब्द सुनते हैं तो आपका दिमाग इन्वेस्टमेंट और ट्रेडिंग से लेकर इंडेक्स और ब्रोकरेज फीस तक की विभिन्न चीज़ें आ सकती हैं। स्टॉक मार्केट की विशाल प्रकृति को देखते हुए, इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि आपके पास चुनने के लिए कई तरह की ट्रेडिंग स्टाइल मौजूद हैं। आपकी पसंद इस बात पर निर्भर होनी चाहिए कि आपको कौन सी ट्रेडिंग स्टाइल अनुकूल लगती है जो आपके वित्तीय लक्ष्यों के साथ सबसे अधिक मेल खाती है।
हर ट्रेडिंग स्टाइल की अपनी खूबी ओर खामी होती है। किसी ट्रेडिंग स्टाइल का चयन करने से पहले बेहतर होगा कि आप इससे जुड़ी सभी चीज़ों से अवगत हों। यह इसलिए भी ज़रूरी है कि आप इसमें अपनी गाढ़ी कमाई का निवेश करेंगे। इसलिए ट्रेडिंग स्टाइल के बारे में पूरी जानकारी हासिल करना महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, यदि आप पैसा बनाना चाहते हैं, तो लंबी अवधि के इन्वेस्टमेंट को चुनना सबसे अच्छा विकल्प हो सकता है। हालांकि, यदि आप तेज़ी से पैसा कमाना चाहते हैं, तो शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग आपके लिए अधिक उपयुक्त हो सकती है। इसके अलावा, यदि आप ऐसी ट्रेडिंग करना चाहते हैं जिसमें डिलीवरी को आगे ले जाना शामिल नहीं है, तो इंट्राडे ट्रेडिंग सबसे बढ़िया है।
नीचे दिए गए लिस्ट पर गौर करें जिसमें भारत के स्टॉक मार्केट में होने वाली विभिन्न टाइप के ट्रेडिंग की रूपरेखा है नींचे दी गई है।
इंट्राडे ट्रेडिंग Intraday Treding - इसे डे ट्रेडिंग भी कहते हैं, इंट्राडे ट्रेडिंग अनुभवी ट्रेडर्स के लिए ही उपयुक्त है। इसमें ट्रेडर्स को उसी दिन स्टॉक खरीदना और बेचना होता है। एक ही ट्रेडिंग डे में ट्रेडर कितनी भी बार स्टॉक में प्रवेश कर सकता है। ट्रेडर के पास इन शेयरों को कुछ सेकंड से लेकर कुछ घंटों तक या ट्रेडिंग सत्र के अंत तक रखने का विकल्प होता है। मार्केट बंद होने से पहले ट्रेडर्स को अपनी ट्रेडिंग बंद करनी होती है। एक्टिव ट्रेडर्सी इंट्राडे ट्रेडिंग करते हैं जो उन्हें जल्दी पैसा कमाने में मदद करता है। इसमें भारी-भरकम मुनाफा होता है, इसलिए जोखिम भी बहुत हैं। इस तरह की ट्रेडिंग में भाग लेने वाले ट्रेडर्स में तेज़ी से फैसला करने की क्षमता होनी चाहिए। इसलिए बेगिनर्स को ट्रेडिंग की इस स्टाइल से दूर रहने की सलाह दी जाती है।
डिलिवरी ट्रेडिंग Delivery Treding - इसे पोजीशन ट्रेडिंग भी कहते हैं, इसमें ट्रेडर का फोकस लॉन्ग टर्म पर होता है। इसका मतलब यह है कि ट्रेडर्स लॉन्ग टर्म के लिए स्टॉक खरीदता है और हफ्तों से लेकर महीनों तक होल्ड करता है। इस टाइप की ट्रेडिंग की सबसे बड़ी चुनौती बड़ी प्राइस मूवमेंट वाले शेयरों से जुड़ी होती है। इसके तहत, ट्रेडर्स को खूब रिसर्च के बाद स्टॉक खरीदना होता है। ट्रेडर्स अक्सर तकनीकी रुझानों का आकलन करते हैं जिससे बड़े प्राइस मूवमेंट का संकेत मिलता है। डिलीवरी ट्रेडिंग के तहत उभरते रुझान के अनुसार स्टॉक खरीदना महत्वपूर्ण होता है। इसी तरह, ट्रेडर को स्टॉक उस वक्त बेचना होता है जब वह अपने पीक पर पहुँच गया हो।
शॉर्ट सेल Short Sell - शॉर्ट सेल पॉपुलर ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी है जो मार्केट के अनुभवी ट्रेडर अपनाते हैं। ट्रेडिंग के इस रूप में ट्रेडर्सी को ऐसे शेयर बेचने होते हैं जो उसके पास भी नहीं होते हैं। इसका मतलब यह है कि ट्रेडर को पहले शेयर बेचना होता है और फिर उन्हीं स्टॉक को ट्रेडिंग सेशन बंद होने से पहले खरीदना होता है। इस तरह के ट्रेड में मंदी के अनुमान के मद्देनज़र ट्रेडर्स को कीमत में गिरावट की उम्मीद होती है। इसलिए वह शेयर बेचने के लिए शॉर्ट पोजीशन लेता है और फिर बाद में शेयर की कीमत घटने पर उन्हें खरीदकर वसूल करता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि बाजार बंद होने से शेयरों की खरीद हो जानी चाहिए। इसका मतलब यह है कि शॉर्ट सेलिंग का लक्ष्य शेयरों को ऊंची कीमत पर बेचना और उन्हें कम कीमत पर फिर से खरीदना है।
आज खरीदें कल बेचें - बाय टुडे सेल टुमॉरो B.T.S.T.- ऐसी ट्रेडिंग के तहत ट्रेडर आज शेयर खरीदकर अगले दिन उन्हें बेच सकता है। इस ट्रेडिंग स्टाइल के ट्रेडर्स का मानना होता है कि शेयरों की कीमत अगले दिन बढ़ जाएगी। शेयर खरीदने के बाद, अगले ही दिन जब बाजार खुलते हैं, ट्रेडर्सी अपने शेयर इस तरह बेचते हैं कि वे लाभ कमा सकें। इस ट्रेडिंग स्टाइल की त्वरित प्रकृति के कारण ट्रेडर्स को शेयरों की डिलीवरी नहीं होती है क्योंकि भारतीय स्टॉक मार्केट ट्रेडिंग+2 के सेटलमेंट के आधार पर संचालित होता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इस ट्रेडिंग स्टाइल और डिलीवरी ट्रेडिंग के बीच अंतर है। जहां तक डिलीवरी ट्रेडिंग का सवाल है तो ट्रेडर को बेचने के लिए तब तक इंतजार करना पड़ता है जब तक स्टॉक उसके डीमैट खाते में डिलीवर नहीं हो जाता है। बीटीएसटी उस स्थिति में काम आता है जब स्टॉक डिलीवर होने से पहले एक मौका देता है। बीटीएसटी मॉडल के तहत खरीदने पर बिना डिलीवर हुएअगले ही दिन बेचना संभव है और ऐसे में ट्रेडर्सी को कोई डीपी शुल्क नहीं लगता है।
आज बेचें कल खरीदें - सेल टुडे बाय टूमारो S.T.B.T - यह ट्रेडिंग स्टाइल बीटीएसटी के बिल्कुल विपरीत है। इसमें ऐसे ट्रेडर्स शामिल होते हैं जो आज बेचकर कल खरीदना चाहते हैं। डेरिवेटिव मार्केट में एसटीबीटी की अनुमति है लेकिन इक्विटी ट्रेडिंग में इस तरह की ट्रेडिंग की अनुमति नहीं है। इस तरह की ट्रेडिंग के तहत, ट्रेडर्स को शॉर्ट सेल करना होता है ताकि अगले दिन खरीदकर इस पोजीशन को चुकता किया जा सके। मार्केट में मंदी के आसार का का लाभ उठाने के लिए ट्रेडर इस तरह की ट्रेडिंग करते हैं ताकि वह मुनाफा कमाया जा सके।
मार्जिन ट्रेडिंग - इस तरह की ट्रेडिंग के तहत एक ही सेशन में सिक्योरिटी खरीदना-बेचना होता है। यह उन लोगों के बीच पॉपुलर है जो तेज़ी से पैसा कमाना चाहते हैं और यह फ्यूचर्स-ऑप्शंस की ट्रेडिंग में विशेष रूप से उपयोगी है। मार्जिन ट्रेडिंग करते समय एक बार में कम एसेट खरीदना चाहिए। इस तरह की ट्रेडिंग के तहत ट्रेडर्स को शुरुआती मार्जिन का भुगतान करना होता है। यहां मार्जिन का मतलब है ट्रेडिंग प्राइस का प्रतिशत और इसका निर्धारण भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड SEBI करती है।
निष्कर्ष - जहां तक स्टॉक ट्रेडिंग के टाइप का सवाल है, तो ट्रेडर्स के पास कई विकल्प हैं। ऊपर दिए गए लिस्ट में भारत में सबसे लोकप्रिय ट्रेडिंग स्टाइल की चर्चा की गई है। मार्केट, ट्रेडिंग और स्टॉक के बारे में अधिक जानने के लिए, एंजेल वन वेबसाइट पर जाएं।
डिस्क्लेमर - हमारे VikasJamdade.blospot.com इस ब्लॉग का उद्देश्य है, महज जानकारी प्रदान करना न कि इन्वेस्टमेंट के बारे में कोई सलाह-सुझाव प्रदान करना और न ही किसी स्टॉक को खरीदने - बेचने की सिफारिश करना।